आख़िर क्यों?

आख़िर क्यों?

Hey there, I’ve written a poem next. This time it isn’t romantic or inspirational, it’s what is in my heart now, about the present happenings in the country, about Rape.
Everything that’s going on around here is disgusting. It’s not just about Kathua, Unnau, Delhi, Or Assam, it’s about India.
We need not go and protest on the streets to show that we care, we need to speak, raise our voice anywhere we can, be it fb. Just speak out, who knows how far your voice will reach.
It’s not #JusticeforAsifa it’s #JusficeforIndia

 

हर इन्सान में है भगवान्
मुझको यह सिखाया था
पर आज के हालात देख लगता है
सब गलत बताया था
क्योंकि ऐसी हैवानियत करने वालों में भगवान् नहीं हो सकते।

वो चार दिवारी थी मंदिर की
कहते जहाँ भगवान् रहते हैं
मतलब वो सब भगवान् के आगे हुआ
क्या भगवान् भी सरकार की तरह सोते रहते हैं
फिर तो ऐसा होना लाज़मी है क्योंकि ये लोग फिर किसी से नहीं डर सकते।

उनको उक्साया उसने
जिसे धर्म की रक्षा करनी थी
पुलिस, पुजारी, बच्चे
जिनकी ये करनी धरनी थी
और फिर नेताओं के बयान, जो करते हैं उनका बचाव, ऐसे लोग इन्सान नहीं हो सकते।

लाज औरत का गहना है
यह सिखाया जाता है शुरू से
पर ‛लड़के हैं गलती हो जाती है’
ना जाने कह देते हैं किस मुहं से
घर में घुसकर, मासूम बच्चों की इज्ज़त से करके खिलवाड़, न जाने ये लोग कैसे हैं जी सकते।

प्रदर्शन के नाम पर देश को जलाया
एक फ़िल्म प्रदर्शित न हो इसलिए सबको धमकाया
वैलेंटाइन पर लाठियां लेकर संस्कृति को बचाया
पर बलात्कार का मुद्दा तो इनको शायद छोटा ही नज़र आया
क्योंकि शायद उनके अनुसार बलात्कार हमारी संस्कृति और समाज को नुकसान नहीं पहुंचा सकते।

यह किस्सा एक का नहीं लाखों का है
जिनका होता बलात्कार और जो छेड़छाड़ से झूझती हैं
हमारे भाई और दोस्त भी छेड़ने वालों में हैं
और हमारी बहनें, बेचारी, फ़िर ख़ुद से ही यह सवाल पूछतीं हैं
आख़िर क्यों?
बचपन से आजतक सब देखा और फिर अनदेखा कर दिया, पर अब हम चुप नहीं रह सकते।

 

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