अब बस भी करो तुम
अब बस भी करो तुम, यूं बिना छूये ही मुझे जो छू लेती हो ऐसा जादू चलाना अब बस भी करो तुम।
क्या याद है तुम्हें वो रात वक़्त था दो मैंने अपना हर सच तुम्हारे आगे यूं रख दिया जैसा नाता तुमसे कोई गहरा हो तुम मुझे एसे लगे जैसे कोई हमदम पर, अब बस भी करो तुम।
तन्हा शामों का मेरी चुपके से हिस्सा बन गयी मिला तो नहीं तुमसे पर शब्दों से कुछ जादू सा कर गयी तुम्हारा हर एक शब्द है जैसे कोई तरन्नुम पर, अब बस भी करो तुम।
तुम्हारे अलावा बात तक किसी से नही करता यूं राज़ बताना तो बहुत दूर है ऐसे मोहब्बत मत दिखाओ शब्दों से ये दिल ज़रा मजबूर है ये नज़रें चाहती तो है, वो दीदार-ए-तबस्सुम पर, अब बस भी करो तुम।
तुम मिले, बात हुई, दस्तूर बना, और मैं कैद हो गया अब ऐसा करतें हैं कि हम मिले, मुलाकात हुई, दस्तूर बना, और इश्क़ हो गया पर, क्या ऐसा कर पाओगी तुम? तो इसलिए, अब बस भी करो तुम।
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